गुरुवार, 27 जनवरी 2011

Adalpura शीतला धाँम

Adalpura शीतला धाँम स्थित प्राचीन शीतला माता मंदिर देश के प्रमुख शक्तिपीठ में से एक है। इस मंदिर के पीछे मान्यता यह है कि यहाँ माँगी गई सभी मुरादें माँ शीतला पूरी करती है। मार्च-अप्रैल में यहाँ लगने वाले चैत मेले में माँ के दर्शन करने के लिए देश के विभिन्न भागों से लोग आते हैं।

श्रद्धालुओं की माता शीतला के प्रति इस कदर आस्था है कि वे मंदिर परिसर के बाहर दिन-रात चादर बिछाकर रहते हैं, वहीं खाना बनाते हैं। तेज गर्मी की मार, गंदगी और दूसरी कठनाईयाँ भी आस्था के सामने छोटी पड़ जाती हैं। हालाँकि पूरे नवरात्रि के दौरान यहाँ बहुत श्रद्धालु आते हैं और अष्टमी व नवमी के दिन भक्तों की संख्या कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है।

शीतला माता मंदिर के कार्यकारी अधिकारियों का कहना है कि सबसे ज्यादा भीड़ चैत मेले मे सोमवार और रविवार को होती है। इस दिन ढेड़ से दो लाख लोग यहाँ दर्शन करने आते हैं। इस मौके पर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानी न आए इसका प्रशासन की ओर से खास ध्यान रखा जाता है। साल में यहाँ दो बार मेला लगता है। चैत के अलावा सावन माह में भी यहाँ मेले लगते हैं।


ND
इस पवित्र स्थान पर लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने भी दूर-दूर से आते हैं। जो लोग अपने बच्चों का मुंडन यहाँ आकर नहीं करा पाते वह भी बाद में यहाँ अपने बच्चों को माता के दर्शन कराने के लिए जरूर लेकर आते हैं। इसी तरह अपने बच्चों की शादी की मन्नत भी लोग यहाँ माँगते हैं।

देवी शीतला माता की आराधना करने से पूरे परिवार की एकता बनी रहती हैं। साथ ही माता रानी सभी मुरादें भी पूरी करती हैं। श्रद्धालुओं को माता शीतला के प्रति बड़ी आस्था है।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

शीतलाष्टमी – चैत्र कृष्ण अष्टमी : Saturday, 26 March 2011

यह व्रत चैत्र कृष्ण अष्टमी या चैत्रमासके प्रथम पक्षमें होलीके बाद पडनेवाले पहले सोमवार अथवा गुरुवारको किया जाता है। इस व्रत को करनेसे व्रतीके कुलमें दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रोंके समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्‍न होती है।

स्कन्द पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व है। चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोडे फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सडने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।

With an aim to cure small pox, Bhagwati Sheetla Devi is worshipped and a vow is observed on Chaitra Krishna Ashtami. On this day of Shitala Ashtami, Sheetala Devi is worshipped ceremoniously. Stale food is offered to the Goddess and then eaten by her devotees.

इस व्रतकी विशेषता है कि इसमें शीतलादेवीको भोग लगानेवाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिये जाते हैं अर्थात शीतलामाताको एक दिनका बासी (शीतल) भोग लगाया जाता है । इसलिये लोकमें यह व्रत बसौडाके नामसे भी प्रसिद्ध है।

एक थालीमें भात, रोटी, दही, चीनी, जलका गिलास, रोली, चावल, मूंगकी दालका छिलका, हल्दि, धूपबत्ती तथा मोंठ, बाजरा आदि रखकर घरके सभी सदस्योंको स्पर्श कराकर शीतलामाताके मन्दिरमें चढाना चाहिये। इस दिन चौराहेपर भी जल चढाकर पूजन करने का विधान है। किसी वृद्धको भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिये।

Sheetla sasti 2011

माघ मास के शुक्ल पक्ष क षष्टी तिथि अर्थात छठी तिथि में शीतला षष्ठी व्रत किया जाता है. वर्ष 2011 में यह व्रत 9 फरवरी के दिन किया जायेगा. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिये किया जाता है. इस व्रत को करने से उपवासक कि आयु तथा संतान की कामना पूरी होती है. कहीं-कहीं इस व्रत के दिन कुते की सेवा भी की जाती है. तथा कुत्ते को टीका लगाकर उसे पकवान खिलाये जाते है.

यह व्रत विशेष रुप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. इस व्रत के दिन उपवास करने वाली स्त्रियों को गर्म जल से स्नान करने से बचना चाहिए. साथ ही इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियों को गर्म भोजन करने से भी बचना चाहिए. इस व्रत को उतरी भारत में विशेष रुप से किया जाता है. इसके साथ ही यह व्रत बंगाल राज्य में अधिक प्रचलित है. कुछ स्थानों में इस व्रत को बासियौरा के नाम से जाना जाता है.

sheetl sasti vrt vidhi

भारत देश में सभी व्रत-त्यौहार किसी न किसी कथा या किवंदती से जुडे होते है. शीतला माता षष्टी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है, कि एक ब्राह्माण के सात बेटे थे. उन सभी का विवाह हो चुका था. परन्तु उसके किसी बेटे की कोई संतान नहीं थी. एक बार एक वृ्द्धा ने ब्राह्माणी को पुत्र-वधुओं से शीतला माता का षष्टी व्रत करने की सलाह दी. उस ब्राह्माणी ने श्रद्वापूर्वक व्रत कराया. व्रत के बाद एक वर्ष में ही उसकी पुत्रवधुओं को संतान कि प्राप्ति हुई.

एक बार ब्राह्माणी ने व्रत में कही गई बातों का ध्यान ने रखते हुए. व्रत के दिन गर्म जल से स्नान कर लिया. व्रत के दिन भी ताजा भोजन खाया. और व्रत के समय बताये गये विधि-नियमों का पालन नहीं किया. यही गलती ब्राह्मणी की बहुओं ने भी की. उसी रात ब्राह्माणी ने भयानक स्वप्न देखा. वह स्वप्न में जाग गई. ब्राह्माणी ने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके है.

अपने परिवार के सदस्यों को देख कर वह शोक करने लगी, उसे पडोसियों ने बताया की भगवती शीतला माता के प्रकोप से हुआ है. यह सुन ब्राह्माणी का विलाप बढ गया. वह रोती हुई जंगल की ओर चलने लगी. जंगल में उसे एक बुढिया मिली. वह बुढिया अग्नि की ज्वाला में तडप रही थी. बुढिया ने बताया कि अग्नि की जलन को दूर करने के लिये उसे मिट्टी के बर्तन में दही लेकर लेप करने के लिये कहा. उससे उसकी ज्वाला शांत हो जायेगी. और शरीर स्वस्थ हो जायेगा.

यह सुनकर ब्राह्माणी को अपने किए पर बडा पश्चाताप हुआ. उसने माता से क्षमा मांगी. और अपने परिवार को जीवत करने की विनती की. माता ने उसे दर्शन देकर मृ्तकों के दिर पर दही का लेप करने का आदेश दिया. ब्राह्माणी नेण ठिक वैसा ही किया. और ऎसा करने के बाद उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे. उस दिन से इस व्रत को संतान की कामना के लिये किया जाता है.

Sheetla sasti vrat katha

भारत देश में सभी व्रत-त्यौहार किसी न किसी कथा या किवंदती से जुडे होते है. शीतला माता षष्टी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है, कि एक ब्राह्माण के सात बेटे थे. उन सभी का विवाह हो चुका था. परन्तु उसके किसी बेटे की कोई संतान नहीं थी. एक बार एक वृ्द्धा ने ब्राह्माणी को पुत्र-वधुओं से शीतला माता का षष्टी व्रत करने की सलाह दी. उस ब्राह्माणी ने श्रद्वापूर्वक व्रत कराया. व्रत के बाद एक वर्ष में ही उसकी पुत्रवधुओं को संतान कि प्राप्ति हुई.

एक बार ब्राह्माणी ने व्रत में कही गई बातों का ध्यान ने रखते हुए. व्रत के दिन गर्म जल से स्नान कर लिया. व्रत के दिन भी ताजा भोजन खाया. और व्रत के समय बताये गये विधि-नियमों का पालन नहीं किया. यही गलती ब्राह्मणी की बहुओं ने भी की. उसी रात ब्राह्माणी ने भयानक स्वप्न देखा. वह स्वप्न में जाग गई. ब्राह्माणी ने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके है.

अपने परिवार के सदस्यों को देख कर वह शोक करने लगी, उसे पडोसियों ने बताया की भगवती शीतला माता के प्रकोप से हुआ है. यह सुन ब्राह्माणी का विलाप बढ गया. वह रोती हुई जंगल की ओर चलने लगी. जंगल में उसे एक बुढिया मिली. वह बुढिया अग्नि की ज्वाला में तडप रही थी. बुढिया ने बताया कि अग्नि की जलन को दूर करने के लिये उसे मिट्टी के बर्तन में दही लेकर लेप करने के लिये कहा. उससे उसकी ज्वाला शांत हो जायेगी. और शरीर स्वस्थ हो जायेगा.

यह सुनकर ब्राह्माणी को अपने किए पर बडा पश्चाताप हुआ. उसने माता से क्षमा मांगी. और अपने परिवार को जीवत करने की विनती की. माता ने उसे दर्शन देकर मृ्तकों के दिर पर दही का लेप करने का आदेश दिया. ब्राह्माणी नेण ठिक वैसा ही किया. और ऎसा करने के बाद उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे. उस दिन से इस व्रत को संतान की कामना के लिये किया जाता है.

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

SHITALA AARTI

Jai Shitala Mata Maiya Jai
Shitala Mata,
Aadi Jyoti Maharanisab Fal
Ki Data (Jai Shitala Mata..)
Ratna Singhasan Shobhit,
Shvet Chatra Bhata
Riddhi Siddhi Mil Chavar
Dolayve, Jagmag Chvi
Chata Data (Jai Shitala
Mata..)
Vishnu Sevat Dhadhe
Seve Shiv Dhata
Ved Puran Varnat Param
Nahin Pate Data (Jai Shitala
Mata..)
Indra Mridang Bajawat
Chandra Vina Hantha
Suraj Taal Bajawe Narad
Muni Gaata Data (Jai Shitala
Mata..)
Ghanta Shankh Shahnai
Baje Man Bata
Kare Bhakt Jun Aarti Lakhi
Lakhi Harshata Data (Jai
Shitala Mata..)
Brahma Rup Vardani, Tuhi
Teen Kaal Gyata
Bhakton Ko Sukh Deti
Matu Pita Bhrata Data (Jai
Shitala Mata..)
Jo Jun Dhyan Lagave
Prem Shakti Pata
Sakal Marorath Pave
Bhavnidhi Tar Jata Data (Jai
Shitala Mata..)
Rogo Se Pidit Koi Sharna
Teri Aata
Kodhi Pave Nirmal Kaya
Andha Netra Pata Data (Jai
Shitala Mata..)
Shitala maai ki Jai

SHITLA CHALISHA

DOHA
Jaya jaya maataa shiitalaa,
tumahii dhare jo
dhyaana .
Hoya bimala shiitala
hridaya, vikase buddhii
bala gyaana .Ghata ghata
vaasii shiitalaa, shiitala
prabhaa tumhaara.
Shiitala chhai.nyyaa main
jhulayi, mayyaa pala naa
daara.
Jaya jaya Shri shiitalaa
bhavaanii, jaya jaga janani
sakala gunakhaanii.
Griha griha shakti
tumhaarii raajati, puurana
sharadha cha.ndra saam
saajatii
Visphotaka sii jalata
shariiraa, shiitala karata
harata saba piiraa.
Maatu shiitalaa, tava
shubha naamaa, sabake
kaadhe aavahii kaamaa.
Shoka harii, shankarii
bhavaanii, baala praana
rakshii sukhadaanii.
Suuchi maarjanii kalasha
kara raajai, mastaka teja
suurya sama saajai.
Chausata yogina sanga
me gaavai, viinaa taala
mridanga bajaavai.
Nruthyaa naatha bhayaro
dhikaraavai, sahasa
shesha shiva paara naa
paavai.
Dhanya dhanya dhaatrii
mahaaraanii, sura nara
munii tav suyasha
bakhaanii.
Jvaalaa ruupa mahaa bala
kaarii, daitya eka
vishphotaka bhaarii.
Ghara ghara pravishata
koi na rakshata, roga
ruupa dharii baalaka
bhakshaka.
Haahaakaara macho jaga
bhaarii, sakyo naa jaba koi
sankata thaarii.
Taba mainyyaa dhari
adhbhuta ruupaa, kara gai
musal marjhiinii suupaa.
Visphotaka hi pakadii karii
liinho, musala prahaara
bahu bidhi kiinha.
Bahu prakaara vaha biinatii
kiinhaa, maiyyaa nahiin
bhala kachhu main
kiinhaa.
Aba nahii maatu kaahuu
griha jai ho, jaha apavitra
vahii ghara rahi ho.
Puujana paatha, maatu
jaba karii hai, havaya
aananda sakala duhkha
harii hai.
Ba bhagat tana shiitala
havaya jai he, visphotaka
bhaya ghora na sai he.
Shri shiitala hii bache
kalyaanaa, bachana satya
bhaashe bhagavaanaa.
Kalasha shiitalaakaa
karavaavai, vrijase
vidhiivata paatha karaavai.
Visphotaka bhaya jihi
griha bhaai, bhaje Devi
kaha yahii upaai.
Kalasha shiitala ka
sajvavey, hwij se vidhivat
paat karaave
Tumahii shiitalaa jaga kii
maataa, tumahii pitaa jaga
ke sukhadaataa.
Tumahii jagaddhaatri
sukha sevii, namo
namaamii shiitale devii.
Namo suurya karavii
dukha haranii, namo
namo jaga taarinii
dharanii.
Namo namo grahonke
bandinii, dukha daaridraa
nisa nikhandinii.
Shri shiitalaa shekhalaa
bahalaa, gunakii gunakii
maatri mangalaa.
Maata shiitalaa tuma
dhanudhaari, shobhita
panchanaama asavaarii.
Raaghava khara baisaakha
sunandana, kara bhaga
duravaa kanta nikandana.
Sunii rata sanga shiitalaa
maai, chaahii sakala sukha
duura dhuraai.
Kalakaa gana gangaa
kichhu hoi, jaakara mantra
naa aushadhii koi.
Heta maatajii kaa
aaraadhana, aura nahii hai
koi saadhana.
Nishchaya maatu sharana
jo aavai, nirbhaya iipsita
so phala paavai.
Kodhii nirmala kaayaa
dhaare, andhaa krita nita
drishtii vihaare.
Bandhaa naarii putrako
paave, janma daridra
dhanii ho jaave.
Sundaradaasa naama
guna gaavata, lakshya
muulako chhanda
banaavata.
Yaa de koi kare yadii
shankaa, jaga de
mainyyaa kaahii dankaa.
Kahata raama sundara
prabhudaasaa, tata
prayaagase puuraba
paasaa.
Graama tivaarii puura
mama baasaa, pragaraa
graama nikata dura
vaasaa.
Aba vilamba bhaya mohii
pukaarata, maatru kripaa
kii baata nihaarata.
Badaa dvaara saba aasa
lagaai, aba sudhi leta
shiitalaa maai.

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

Jai ma sheetla adalpura wali

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

ma sheetla brat

'माता शीतला'
देवी-
शक्तियों में
एक
प्रमुख
स्थान
रखती हैं।
ये
मुख्यत:
रोग-
निवारण
की देवी हैं।
शीतला माता की उपासना घातक
बीमारियों से
मुक्ति के लिए
होती है।
इनकी उपासना व
अर्चना से रोग
नियन्त्रित
होते हैं
तथा सभी कामनाओं
की पूर्ति करती है।
देवी को भोग में
शीतल और
बासी पदार्थ
प्रिय हैं। इनके
पूजन वाले दिन
घर में
चूल्हा जलाना वर्जित
माना जाता है।
इसलिये इनके
पूजन में भोग
लगाने के लिये
रात्रि में
ही भोजन
बना लेना चाहिए.
प्रात: होते
ही यह सब
बासी हो जाता है
इसीलिए इसे
बसौडा या बसीऔडा भी कहते
हैं। देवी को इन
पदार्थो का भोग
लगाकर व
उन्हीं को खा कर
व्रत
तोड़ा जाता है।
इनका व्रत करने
के लिये सुबह
उठकर शीतल जल से
स्नान
करना चाहिए। एक
दिन पहले बनें
भोजन से
माता को भोग
लगाना चाहिए।
भोग में मिठाई,
पूआ, पूरी, दाल-
भात
आदि बनाना चाहिए।
सुगन्धित
पुष्पों द्वारा देवी की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
इस दिन
शीतला स्तोत्र

शीतला माता की ध्यान
पूर्वक
कथा सुननी चाहिए।
रात्रि में
दीपक जलाकर एक
थाली में भात,
रोटी, दही, चीनी,
जल, रोली, चावल,
मूँग, हल्दी,
मोठ,
बाजरा आदि डालकर
मन्दिर में
चढ़ाना चाहिए।
इस दिन गर्म
चीजों का सेवन
नही करना चाहिए .
केवल
ठंड़ा पानी और
ठण्ड़े भोजन
का ही सेवन
करना चाहिए।
इनका व्रत करने
से मन शीतल,
संतान सुखी,
जीवन मंगलमय व
शरीर
सभी रोगों से
मुक्त रहता है।

MA SHEETLA adalpur wali

In Hinduism, Goddess
Shitala, or Sheetala Mata,
is considered an aspect of
Shakti. Popularly she is
the Hindu goddess of
small pox in North India
and is known to spread
the dreaded disease and
cure it. In rural India, she
is also considered as an
incarnation of Goddess
Parvati and Durga, which
are two forms of Shakti.
Goddess Shitala is popular
as Mariamman in Tamil
Nadu. She is undoubtedly
one of the most popular
rural deities and her origin
can be traced to the days
of Nature Worship.
Legend has it that
Goddess Shitala wears a
red-colored dress and
rides around the villages
in North India on a
donkey (ass) and inflicting
people with the dreaded
pox – small pox, chicken
pox etc. Symbolically, she
represents Nature ’s
power
of generating viruses
causing disease and
Nature ’s healing power
and is of tribal origin. She
is depicted having four
hands. In her four hands
she carries a silver
broom, winnow fan,
small bowl and a pitcher
with Gangajal, holy water
from River Ganga.
Occasionally, she is
depicted with two hands
carrying a broom and
pitcher. Symbolically,
Goddess Sheetala idol also
emphasizes the need for
cleanliness.
According to Puranas,
Shitala, the cooling one,
was created by Lord
Brahma. She was
promised by Brahma that
she will be worshipped as
a Goddess on earth but
she should carry the
seeds of lentils. In folktales
in North India, the lentil is
‘ Urad dal.’ She then asked
for a companion and she
was directed to Lord
Shiva, who blessed her
and created Jvara Asura
(the fever demon). It is
said that he was created
from the sweat of Lord
Shiva.
Shitala and Jvara Asura
remained in Devaloka
along with other gods and
goddess. They used a
donkey to transport the
lentils to wherever they
went. But the lentil seeds
one day turned into
smallpox germs and start
to spread the disease
among gods and
goddesses. Finally, fed up
with Goddess Shitala,
gods asked her to go and
settle in heaven where she
will be worshipped.
Shitala and Jvara Asura
came down to earth and
started hunting for a place
to stay.
They went to the court of
King Birat, an ardent
devotee of Shiva. He
agreed to worship her
and give a place in his
kingdom but she will not
get the respect given to
Shiva. An angry Shitala
demanded supremacy
over all other gods and
when King Birat did not
budge. She spread
different kinds of pox on
the land and finally, the
King had to agree to her
wishes. Soon the disease
and all its after effects
were miraculously cured.
The most important
festival dedicated to her
takes place in Chaitra
month, the Ashtami day
after Purnima (full moon)
in the month is observed
as Sheetala Ashtami.
There are famous temples
gudgaw haryana, chaukia
jaunpur,adalpura
mirzapur,shetla ghat
varanasi.
from-goddes blog