भारत देश में सभी व्रत-त्यौहार किसी न किसी कथा या किवंदती से जुडे होते है. शीतला माता षष्टी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है, कि एक ब्राह्माण के सात बेटे थे. उन सभी का विवाह हो चुका था. परन्तु उसके किसी बेटे की कोई संतान नहीं थी. एक बार एक वृ्द्धा ने ब्राह्माणी को पुत्र-वधुओं से शीतला माता का षष्टी व्रत करने की सलाह दी. उस ब्राह्माणी ने श्रद्वापूर्वक व्रत कराया. व्रत के बाद एक वर्ष में ही उसकी पुत्रवधुओं को संतान कि प्राप्ति हुई.
एक बार ब्राह्माणी ने व्रत में कही गई बातों का ध्यान ने रखते हुए. व्रत के दिन गर्म जल से स्नान कर लिया. व्रत के दिन भी ताजा भोजन खाया. और व्रत के समय बताये गये विधि-नियमों का पालन नहीं किया. यही गलती ब्राह्मणी की बहुओं ने भी की. उसी रात ब्राह्माणी ने भयानक स्वप्न देखा. वह स्वप्न में जाग गई. ब्राह्माणी ने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके है.
अपने परिवार के सदस्यों को देख कर वह शोक करने लगी, उसे पडोसियों ने बताया की भगवती शीतला माता के प्रकोप से हुआ है. यह सुन ब्राह्माणी का विलाप बढ गया. वह रोती हुई जंगल की ओर चलने लगी. जंगल में उसे एक बुढिया मिली. वह बुढिया अग्नि की ज्वाला में तडप रही थी. बुढिया ने बताया कि अग्नि की जलन को दूर करने के लिये उसे मिट्टी के बर्तन में दही लेकर लेप करने के लिये कहा. उससे उसकी ज्वाला शांत हो जायेगी. और शरीर स्वस्थ हो जायेगा.
यह सुनकर ब्राह्माणी को अपने किए पर बडा पश्चाताप हुआ. उसने माता से क्षमा मांगी. और अपने परिवार को जीवत करने की विनती की. माता ने उसे दर्शन देकर मृ्तकों के दिर पर दही का लेप करने का आदेश दिया. ब्राह्माणी नेण ठिक वैसा ही किया. और ऎसा करने के बाद उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे. उस दिन से इस व्रत को संतान की कामना के लिये किया जाता है.
Bolo Shitala mata ki jai
जवाब देंहटाएंIs time Shitala-Ashtami kab hai.
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