'माता शीतला'
देवी-
शक्तियों में
एक
प्रमुख
स्थान
रखती हैं।
ये
मुख्यत:
रोग-
निवारण
की देवी हैं।
शीतला माता की उपासना घातक
बीमारियों से
मुक्ति के लिए
होती है।
इनकी उपासना व
अर्चना से रोग
नियन्त्रित
होते हैं
तथा सभी कामनाओं
की पूर्ति करती है।
देवी को भोग में
शीतल और
बासी पदार्थ
प्रिय हैं। इनके
पूजन वाले दिन
घर में
चूल्हा जलाना वर्जित
माना जाता है।
इसलिये इनके
पूजन में भोग
लगाने के लिये
रात्रि में
ही भोजन
बना लेना चाहिए.
प्रात: होते
ही यह सब
बासी हो जाता है
इसीलिए इसे
बसौडा या बसीऔडा भी कहते
हैं। देवी को इन
पदार्थो का भोग
लगाकर व
उन्हीं को खा कर
व्रत
तोड़ा जाता है।
इनका व्रत करने
के लिये सुबह
उठकर शीतल जल से
स्नान
करना चाहिए। एक
दिन पहले बनें
भोजन से
माता को भोग
लगाना चाहिए।
भोग में मिठाई,
पूआ, पूरी, दाल-
भात
आदि बनाना चाहिए।
सुगन्धित
पुष्पों द्वारा देवी की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
इस दिन
शीतला स्तोत्र
व
शीतला माता की ध्यान
पूर्वक
कथा सुननी चाहिए।
रात्रि में
दीपक जलाकर एक
थाली में भात,
रोटी, दही, चीनी,
जल, रोली, चावल,
मूँग, हल्दी,
मोठ,
बाजरा आदि डालकर
मन्दिर में
चढ़ाना चाहिए।
इस दिन गर्म
चीजों का सेवन
नही करना चाहिए .
केवल
ठंड़ा पानी और
ठण्ड़े भोजन
का ही सेवन
करना चाहिए।
इनका व्रत करने
से मन शीतल,
संतान सुखी,
जीवन मंगलमय व
शरीर
सभी रोगों से
मुक्त रहता है।
Jai ma shitla
जवाब देंहटाएंjai mata di ma shitla sabhi bhakto ki manokamana puri karti hai.